मैं उस जगह ठहरी तो बहुत देर तक थी पर न वो रुका न मैंने आवाज़ दी क्योंकि मैं उसे उसकी मंजिल से रोकना नहीं चाहती थी खुद ग़म सहना चाहती थी पर उसे देना नहीं चाहती थी......
@@#तुम्हारी यादों के पन्ने से.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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