मुझे उस से प्यार था
उसे पैसे से प्यार था....
मुझे उसकी फ़िक्र थी
उसे दुनियाँ की फ़िक्र थी....
मुझे उसके करीब अच्छा लगता था
उसे मुझसे दूर अच्छा लगता था....
उसे दुनियाँ की परवाह थी
मुझे उसकी परवाह थी.....
वो लोगों के सामने मुझे
अपना बनाने में डरता था....
मैं लोगों के सामने अपने
साथ होने में गर्व करती थी....
मैं उसे अपना समझती थी
वो मुझे पराया समझता था....
मैं उसके ग़म लेती थी
वो मेरी खुशियाँ लेता था....
यही सिलसिला चलता रहा
आख़िर वो "मैं" बन गया और
"मैं" "वो" बन गयी .....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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