वो मेरी आशिक़ी था
मैं उनकी ग़लती
ऐसे -ऐसे मैं उनकी
मुहब्बत बन गई
वो नादाँ समझ न पाया
कब मैं उसके दिल की
चाहत बन बैठी
अब ये गुनाह वो कर बैठा
ना जाने कब वो प्यार के
सफ़र में सवार हो गया
इस बात से वो अभी अंजान है
यारो वो रास्ता भटक गया है
कोई जाके उनको
मुहब्बत की दुनियाँ से दूर
नफ़रतों की दुनियाँ में
भेजने में मदद करो
जीत हमेशा मुहब्बत की
हुई है....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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