ज़श्न-ए-बहारा हो तुम्हारे बाहों की गिरफ में ये लम्हात को याद कर के तुम अक्सर मुझे याद आ जाया करते हो......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
No comments:
Post a Comment