तुम्हें मैं चाँद कहूँ उसमें बहुत दाग हैं तुम्हें मैं सूरज कहूँ उसमें बहुत आग है तुम्हें मैं अपना कहूँ इसमें बहुत प्यार है.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
"तुम" और "मैं"
No comments:
Post a Comment