Saturday, 2 February 2019

वो ख्वाब , ख्वाब ही रहा

देखा था इक ख्वाब इन बंद आँखों से
मगर वो ख्वाब , ख्वाब ही रहा
मैं उसे हकीकत में तब्दील न कर सकी
तुम्हारे साथ इक आशियाना सजाने की
बड़ी ख्वाहिश थी इस दिल में सनम
रोज़ फैलाये थे हर वक़्त नमाज़ में
ये हाथ खुदा-ए-पाक के सामने
मग़र लगता है दुआ फ़क़त आसमान से
टकरा के फिर जमीं पर आ गिरी
बंद आँखों के ख्वाब बन्द आँखों में रह गये
...
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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