Saturday, 2 February 2019

"मैं", "तुम" और "तुम्हारी तस्वीर"

"मैं", "तुम" और "तुम्हारी
तस्वीर"

आज भी वही पुरानी तुम्हारी तस्वीर रखी है किताबों के पन्नों के बीच में जो अब बहुत पीली पड़ चुकी है पता है न उसका पीलापन क्या निशानी है वो याद दिलाता है कि कई बरस हो गए हमारे पाक रिश्ते को अब भी उन पन्नों से खुश्बू आती है जब मैं उस किताब का बरक पलटती हूँ खुश्बू-ए-मअत्तर से ये जहाँ माअमूर हो जाता है उस तस्वीर की महक जो अब भी हमें पुरानी यादों के साये में कहीं खो जाने को बहुत दूर ले जाती है जहाँ मैं खुद को तुम्हारे साथ महसूस किया करती हूँ तुम्हारे प्यार भरे आलिंगन में फिर खो जाती हूँ ......

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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