Saturday 2 February 2019

वो सफ़र कितना रंगीन था

वो सफ़र कितना रंगीन था
जब मेरा सर तुम्हारे काँधे पे था
मेरी बाहें तुम्हारी बाहों में थीं
मानो उस पल ऐसा लग रहा था
जैसे सारी क़ायनात को मैंने
अपनी मुठ्ठी में समेट लिया हो
उस मंजर की बात न पूछो "तस्कीन"
उस पल हर लम्हा गुलाबी लग रहा था
तुम्हारे चेहरे पे मेरे प्यार की निशानियाँ थीं
मीलों दूर चले जा रहे थे "हम-तुम"
बस ऐसा लग रहा था उस पल को
यूँ  हमेशा सबा की तरह बहने दो
सारी उम्र में तुम्हारी आँखों में खो जाऊँ
तुम मेरे हो जाओ मैं तुम्हारी हो जाऊँ

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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