Sunday 3 February 2019

उजाले से अंजान ही रहती

तुम तो मुझे अंधेरे में छोड़ के चले गए थे
तब उस वक़्त मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ़ हुयी थी
मगर अब सोचती हूँ कि न तुम ऐसा करते
तो शायद मैं अब तक उजाले से अंजान ही रहती...

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

2 comments:

  1. बहुत गंभीर रचना।
    भाव-गाम्भीर्य से ओतप्रोत सुंदर रचना।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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    1. बहुत-बहुत आभार आपका💐💐

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