करीब एक साल पहले की बात है मेरा मन था मुझे और पढ़ना है जीवन में कुछ करना है आगे बढ़ना है
तब मैं पापा से जिद कर बैठी इसी बात की मुझे आगे पढ़ना है पर उस समय पाप के दिल की बात नहीं जानती थी कि जितना मेरा मन है पढ़ने का उस से कहीं ज्यादा पापा का मन है मेरी बिटिया आगे बढ़े पर उनकी कुछ मजबूरियाँ थी कुछ जिम्मेदारियां थी उस समय मैं पापा को समझ नहीं पा रही थी जब मैं थक गई मेरी इच्छानुसार मुझे न मिला तब मेरे मन मैं ख़्याल आया कि शायद मेरे घर में भी लड़का लड़की में भेदभाव होता है उस वक़्त मैंने अपनी ख्वाहिशों को मार मन में की जो समाज में होता आया है कि लड़के को पढ़ाओ क्यों कि उन से आने वाली पीढ़ी चलेगी और घर में कमा के लेके आएगा लड़कियाँ आखिर पराया धन हैं एक दिन उनको ससुराल जाना है जितना पैसा पढ़ाई में लगाओ उतने में शादी हो जाये कुछ नहीं वक़्त बीता कुछ दिन बाद मुझसे पापा ने कहा कल जाके कानपुर भैया के साथ ऑप्टोमेट्री में अपना एडमिशन करा लेना बाहर पढ़ने की जाने की हुड़क तो थी ही मन खुशी से गदगद हो गया पर एक सवाल मेरे मन में चल रहा था पापा ने इतना सब अरेंजमेंट कैसे किया फिर मैंने पापा से हिम्मत जुटा के पूछा आप कहाँ से लाएंगे इतना पैसा ????? पापा ने कहा तुम्हें इससे क्या मतलब मेरा काम है पढ़ाना तुमको तुम्हारा काम है पढ़ना बस "बेटा" मेहनत से पढ़ना । पापा के ये कहते ही मेरे आँख में आँसू थे क्यों कि मैं कितनी गलत थी कि पापा लड़का-लड़की में भेद करते हैं उस समय मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पा रही थी पापा ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि मेरी बिटिया आत्मनिर्भर बने मुझे दहेज देके दहेजखोरों को बेचना नहीं है" तब घर के लोग सारे रिश्तेदार सब पापा के खिलाफ थे शादी कर दो पढ़ाओ मत तब उस वक़्त पापा सारी दुनियाँ से लड़ गये मेरे लिए तब अकेले सिर्फ मेरे पापा मेरे साथ थे उस समय मैंने बहुत गर्व महसूस किया कि मैं आप जैसे महान पिता की बेटी हूँ और बचपन से अब किसी ने मुझे साहस, प्रेणना नहीं दी जहाँ भी मैं कमजोर पड़ी पापा मेरे जीवन में एक ढाल बन के सहारा दिया
Dear, papa
Lovvvveeee uuuuu alootttt
आपकी बहादुर बेटी,
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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