मैं थक गई उस ज़ालिम से प्यार करते-करते पर वो ज़ालिम माना नहीं मुझ पे सितम कर-कर के अंत में देखते हैं कौन जीत ता है.......
"नफरत या मुहब्बत"
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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