बहुत हुआ रूठने-मनाने का खेल आओ गले लग के आज हम सारे गीले शिकवों को दूर कर देते हैं फिर न रूठने की कसम खाते हैं ताउम्र प्यार का वादा निभाते हैं......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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