अजीब हाल है कुछ मेरी इस क़लम का जब भी कुछ लिखती है तुम्हारे किस्से बयाँ कर जाती अब तो ये भी न रही मेरी.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
No comments:
Post a Comment