माँ तुम बहुत याद आती हो-2
घर से निकलते वक़्त जब आँख में
आँसू भर के तुमने कहा "जाओ बेटा"
मैं अपनी आँखों को नम होने से रोक न पाई
मेरे नयनों ने से नीर छलक ही गये
जब मैं तुम्हारी आँखों से ओझल न हो गई
तब तक माँ तुम मुझे यूँ ही निहारती रही
कोई भी ग़म आया ज़िन्दगी में
तुम्हारे पल्लू के छाँव में रह कर
तुमने मुझसे उसे दूर कर दिया
तुम्हारे उस दामन में जग की सारी
खुशियाँ छुपी हुईं हैं माँ
आपके पास आने के बाद मेरे सारे ग़म
पता नहीं कहाँ गुम हो जाते हैं माँ
चोट मुझे लगती थी दौड़ के
झट से आके मुझे देखना
फिर माथे पे ढेर सारी सिकन और
हड़बड़ाहट के साथ कहना
"बेटा कहाँ लग गई है" फिर बड़ी
परेशानी से कहना "कैसे करती हो दिखाओ जरा"
उस चोट पे अपना जादू वाला हाथ फेर देना
उस हाथ के छुअन से वो दर्द पता नहीं पल भर में
फुर्र से कहाँ गायब कर देती थी माँ
तुम्हारे छुअन में न जाने कौन-सा जादू है माँ
पता नहीं मेरे माथे की सिकन को
पल भर में तुम कैसे पढ़ लेती थी माँ
मेरे झूठ को भी पल -भर में पकड़ लेती थी माँ
खुद ही डाँटना, फिर ढेर सारे नीर बहाने पर मेरे
अपने दामन से पोंछना माँ
माँ तुम बहुत याद आती हो माँ बहुत याद ......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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