तुम तो सागर-हो-सागर, सागर तो सौ बुराईयों को समेटता है तुम मेरी सौ अच्छाइयों को छोर कर एक बुराई के पीछे मुझे तन्हा छोर कर चले गये
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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