ऐ गुनगुनी सर्दी की धूप जरा जाकर उन के शहर में भी उजाला कर दे अंधेरे में बैठे हैं वो शायद इसी लिये उन्हें मेरा चेहरा दिखाई नहीं देता...
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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