न मालूम था राह-ऐ-मुहब्बत में किन-किन हदों से गुजरना पड़ता है कूद चुके हैं इस दरिया में अब जाके एहसास होता है अपने लिये दुख ,उनके लिये ख़ुशी अपने लिये खार उनके लिये गुलशन को चुन लेना ही"ऐ"मुहब्बत तेरा दूसरा नाम है
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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