वहाँ बहुत महफिलें थी पर ये आँखें एक बार तुम पर टिकी इन्हें और कोई नज़ारा न नज़र आया हर तरफ़ देखा भी तुम्हारे होते हुये इन आँखों को हर महफ़िल खाली ही लगी
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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