Saturday, 2 February 2019

हर मंजिल हर कारवाँ सिर्फ हमारा हो

कुछ ज्यादा तो नहीं बस ये शमा हो
दूर तलक नीले आसमान का साया हो
इन हाथों को तेरी बाहों का सहारा हो
बहते किसी समुंदर का किनारा हो
चारों तरफ फैली हरियारी हो
तुम्हारी मीठी बातों का सिलसिला हो
अटखेलियां करती कुछ दिल में उमंगें हो
तेज़ हवाओं की सरसराहट हो
कुछ खग की चहचहाट हो
फिर हर मंजिल हर कारवाँ सिर्फ हमारा हो......

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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