Saturday, 2 February 2019

बचपन वाली मुस्कान लौटा दो न माँ

सब कुछ है माँ आपके बस में फिर
एक बार मेरा बचपन लौटा दो न माँ
फिर से छोटा कर दो न माँ
अपने आँचल की छइयाँ में
फिर एक बार छुपा लो न माँ
तुम्हारे आँचल से महफ़ूज जगह
दुनियाँ के किसी भी कोने में नहीं
फिर दौड़ना है उन सूनी गलियों में माँ
छुपा-छुपाई खेलना है किसी को
"धप्पा" बोलना है माँ लौटा दो न बचपन
नहीं चाहिये ये माथे की सिकन
नहीं चाहिये ये दुखों का पहाड़
हो सके तो बस में बचपन लौटा दो न माँ
हो सके तो बचपन वाली
निंदिया लौटा दो न माँ
जीना है बेखौफ़ माँ
नहीं चाहिये दुनियाँ का बोझ सर पे
फिर उन्हीं सड़कों पे शोर मचाना है माँ
माँ आपके बस में सब कुछ है माँ
न कोई बाधा, न कोई बंदिश चाहिये माँ
खुल के जीना है नीले आकाश के तल
वही बचपन वाली मुस्कान लौटा दो न माँ

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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