आज सुबह-सुबह मेरे दिल के दरवाजे पे
तुम्हारी यादों के वजूद ने दस्तक दी
मैंने पूछा कौन ?
बोली- मैं वही
जिन्हें तुम हर-पल अपने सीने से लगाये रखती हो,
जिन्हें तुम पल भर के लिये खुद से कभी दूर नहीं करती
मैं वही हूँ
अपना नाम बिन बताये
मैं समझ गयी
मैंने कहा , "उनकी यादें"
बोली हाँ, "उनकी यादें"
जब ये सब देख के मेरी आँख खुली
तो वहाँ कोई नहीं था
मैं थी और मेरी तन्हाई
देखो न मैं भी कितनी पागल हूँ
जो तुम्हें अपनी नींदों में भी बुलाती हूँ
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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