चलो आज हम तुम एक बार
फिर से अजनबी बन जातेे हैं
फिर एक बार उसी मोड़ पर टकराते हैं
फिर से वही रूठने मनाने का खेल खेलते हैं
तुम रूठते हो मैं मनाती हूँ
तुम्हें मनाने के लिये फिर कोई
नई तरकीब सोचती हूँ
कभी मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँ
कभी तुम मेरा इन्तज़ार करो
फिर एक लम्बे इन्तज़ार की घड़ियों के बाद
हाल-ए-दिल बयाँ करते हैं
घण्टों तुमसे बात कर ने का
सिलसिला यूँ ही चलता रहे
तब यहाँ की वहाँ की बात को छेड़ते हैं
जब तुम्हारी आँखों में नींद आने लगे
उस दिन को उड़ाने के लिए
फिर कुछ ऊट-पटांग करते हैं
जब तुम मेरी बातों पे अरोचक होने लगते हो
चलो फिर कोई प्यार की बात को छेड़ती हूँ
चलो आज हम तुम एक बार
फिर से अजनबी बन जाते हैं
फिर वहीं से उसी जगह से
फिर वही कारवाँ शुरू करते हैं
जब तुम मेरे ऊपर खीझो फिर मैं
तुम्हारे ऊपर प्यार की बौछार करती हूँ
कौन किसे पहले मनायेगा
ये खेल फिर एक बार खेलते हैं
चलो आज हम तुम..............
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
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