तब उस वक़्त मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ़ हुयी थी
मगर अब सोचती हूँ कि न तुम ऐसा करते
तो शायद मैं अब तक उजाले से अंजान ही रहती...
नफरतों की दुनियाँ से निकल के देखो
सच!दुनियाँ बड़ी खुशनुमा लगेगी......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ज़श्न-ए-बहारा हो तुम्हारे बाहों की गिरफ में
ये लम्हात को याद कर के तुम अक्सर मुझे
याद आ जाया करते हो......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो मेरी आशिक़ी था
मैं उनकी ग़लती
ऐसे -ऐसे मैं उनकी
मुहब्बत बन गई
वो नादाँ समझ न पाया
कब मैं उसके दिल की
चाहत बन बैठी
अब ये गुनाह वो कर बैठा
ना जाने कब वो प्यार के
सफ़र में सवार हो गया
इस बात से वो अभी अंजान है
यारो वो रास्ता भटक गया है
कोई जाके उनको
मुहब्बत की दुनियाँ से दूर
नफ़रतों की दुनियाँ में
भेजने में मदद करो
जीत हमेशा मुहब्बत की
हुई है....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
सुनो,
ये जो तुम्हारी यादों का सफ़र है न
ये तुमको भूलने में मुझे बहुत तकलीफ़ देता है
हो सके तो इसे वापस ले जाओ
बड़ा एहसान होगा तुम्हारा.....
तुम्हारी नापसन्द
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
आज भी कुछ लफ्ज़ उनके मेरे दिल में
धड़कन बन के धड़का करते हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हमारे वादे पे वो खरा न उतरा
इससे उनको मैं बेवफ़ा कहूँ ये
मेरे इश्क़ की तौहीन होगी "तस्कीन"
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
न जाने क्या वास्ता है तुम्हारी यादों से
जितना दूर जाओ उतना और पास खींच लातीं हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ये रात का मंजर
उनके बाहों में मेरा सर
हल्की सर्द मद भारी रात
चारों ओर छिटकी चाँदनी
एक-दूसरे के हाथों की
लकीरों में खुद को ढूंढें
फिर छेड़ दें कोई तराना
फिर "तस्कीन" कहीं और
जाने की बात भला क्यों करे💕💕💕💕.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
माँ.....
बिन बोले कैसे समझ जाती हो
मेरे दिल की बातें
माँ....
बिन बताये मुझे मेरी थाली में
मेरी पसन्द की चीज़ रखना
माँ....
और अपने हिस्से का भी मुझे दे देना
माँ आपका स्नेह अपार है असीमित है
माँ....
किस बात से मैं परेशान हूँ मेरी माथे की
सिकन को आसानी से पढ़ लेना
माँ....
सच!मैं आपके बिन बहुत अकेली और अधूरी हूँ
मेरी सारी बलाओं को खुद ले लेना
माँ....
बदले में ढ़ेर सारी दुआएं देना
खुद आँखें नम कर के
माँ....
अपने आँचल को मेरे सर पे रखना
मुझे दुनियाँ की बुरी बलाओं से महफूज़ रखना
माँ....
जब तक मैं आँखों से ओझल न हो जाऊं
इक टक मुझे देखते रहना
माँ....
कई दिनों से कुछ सिक्कों को इकठ्ठा करना
जाते वक़्त उन सिक्कों को तोहफ़े में देना फिर
माँ....
रुंधते हुए स्वर में कहना , "ले लो बेटा जो है"
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
"हाँ"
मुझे तुमसे आज भी
उतना ही प्रेम है
निःस्वार्थ
बेहिसाब
बेशुमार....
"मैं" और "तुम" "❤" "हम"
उनकी वो पहली मुलाक़ात
मेरे इश्क़ को ताज़ा रखने के लिए बहुत है
मेरे लिए.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम्हारी आँखे बहुत नशीली हैं
ये बात उनके मुँह से सुने बहुत
अरसा हो गया मेरे करीब आके वो
ये बात मेरे कानों में हौले से कह जाए
फिर शर्म से मैं अपनी पलकें अपनी आँखों
पे गिरा दूँ और हया से मेरे दोनों गाल सुर्ख हो जाये
यारो!
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
अजीब इश्क़ है उनका क़रीब जाओ तो दूर जाने की बात करता है
दूर जाओ तो अपने प्यार से बहुत नज़दीक खींच लाता है.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम्हें मैं चाँद कहूँ उसमें बहुत दाग हैं
तुम्हें मैं सूरज कहूँ उसमें बहुत आग है
तुम्हें मैं अपना कहूँ इसमें बहुत प्यार है.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
"तुम" और "मैं"
देखो न,
ये साल भी ढ़ेर सारी तुम्हारी मीठी यादों के साये में गुजर ही गया न कभी तुम पर ढ़ेर सारा प्यार लुटाया, कभी तुम्हारी तस्वीर से जी बहलाया कुछ झूठी आशाएं तुमसे मिलन की कुछ झूठी उम्मीदें तुम्हें करीब से देखने की कभी खुद को तड़पाया कभी तुमको हंसाया और देखते-देखते न जाने कब ये साल बीत ही गया.....
तुमसे ही मैं.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हमसे मुहब्बत करके वो अंजान है हमीं से
इसी मासूमियत से मुझे बहुत प्यार है उनसे...
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
आज उनके दिन है रब ने उनको खुशियों से नवाज़ा है खुशियाँ बटोर लो
जब तुमसे दूर जायेगे हम उन्हें याद बहुत आएंगे
इस बात से वो अभी अंजान है
तब पछतावे के सिवा कुछ न उनके हाथ होगा
तब रब हमें भी खुशियाँ देगा....
सदा दिन ऐसे न होंगे मेरे....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो बोला, "मेरे अच्छे दिन आने वाले हैं"
मैं दुखी थी ये कहते ही मैंने अपने अंदर
बहते समुंदर को थामा झूठी मुस्कान के साथ
मैंने भी कह दिया"तुम खुश हो इसलिए मैं भी बहुत खुश हूँ तुम्हारी खुशी के सिवा क्या चाहिए हमें
वो नादान है बहुत ये सोचकर माफ़ कर देती हूँ अक्सर मैं उसे....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
किसी-किसी के कड़वे बोल
जीवन भर कितना दर्द देते हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कभी-कभी खुद का दर्द छुपा के हमें लोगों के सामने कितना दिखावा करना पड़ता है .....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
अपनी ओढ़नी के दामन में आजा तुझको छुपा लूँ
फिर जाये न तू कभी मुझसे दूर ऐसा तुझे बना दूँ.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
इस भीड़ भारी दुनियाँ में
कौन अपना है कौन पराया
कैसे पहचानोगी "तस्कीन"
यहाँ तो एक चेहरे पे कई चहरे
लगा रखे हैं "तस्कीन".....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हसरतें हैं कुछ इस क़दर
तुम मिलो मुझे उसी मोड़ पर
फिर प्यार करूँ तुम्हें जी भरकर....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
सारी दुनियाँ को वो पहचाना है
बस एक हमसे ही वो बेगाना है.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हमें वही चीज़ क्यों पसन्द आती है
जो हमारे नसीब में नहीं होती है.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हर बार की तरह वो फिर कह गया
मेरा तुम्हारा रिश्ता क्या है
अब उससे बेहतर ये कौन
जनता है "मैं" कौन हूँ उसकी....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
एक बार थाम लिया आका का दामन
सब नज़ारा देख लिया यहाँ
अब तो जीना मरना यहीं
बस कर दो करम आका
किसी से मेरा दिल न दुखे
हर एक कि पूरी हो तमन्ना....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जब-जब वो हमसे मिले
उस हर रोज मेरी दीवाली हो
मेरा संसार तुम्हीं से है प्रियतम
हर उनका दीद हो और
हर दिन मेरी दीवाली हो....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ऐसी भी कोई दीवाली हो तुम्हारे दिल में
मेरे लिए प्यार के दिये जले.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जानती थी हमेशा की तरह
उनका जवाब "न" में ही आयेगा
फिर क्यों "तस्कीन" हाँ की
उम्मीद में पागल रहती है उसके लिए......
दुनियाँ बदली पर तुम वही के वही रहे....😢😢😢😢
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जो हमें खुशी दे नहीं सकता
हम उससे खुशी की उम्मीद क्यों करते हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
एक तुम्हारे न होने से ज़िन्दगी में कमी तो नहीं
पर हाँ सूनी बहुत है......😊😊😊😊
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तन्हाई की वो हर रात गवाह है
जिस रात इस दिल ने तुमको
तड़प के याद न किया हो....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
शायरी करते वक़्त जो अहसास
दिल से तुम्हारे लियेे निकलते हैं
कसम से बड़े ही खूबसूरत होते हैं
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कई दिनों से कुछ अरमां
कुछ ख्वाहिशें क़ैद हैं
इस सीने में गर
इजाज़त हो तो
ज़िक्र करूँ तुमसे......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
रात की शम्मा को बुझा दो
तुम्हारे प्यार की लौ काफी है....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
मुझे उस से प्यार था
उसे पैसे से प्यार था....
मुझे उसकी फ़िक्र थी
उसे दुनियाँ की फ़िक्र थी....
मुझे उसके करीब अच्छा लगता था
उसे मुझसे दूर अच्छा लगता था....
उसे दुनियाँ की परवाह थी
मुझे उसकी परवाह थी.....
वो लोगों के सामने मुझे
अपना बनाने में डरता था....
मैं लोगों के सामने अपने
साथ होने में गर्व करती थी....
मैं उसे अपना समझती थी
वो मुझे पराया समझता था....
मैं उसके ग़म लेती थी
वो मेरी खुशियाँ लेता था....
यही सिलसिला चलता रहा
आख़िर वो "मैं" बन गया और
"मैं" "वो" बन गयी .....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कभी-न-कभी तो जज़्बात जगे होंगे
उसके दिल में मेरे लिए वरना.....
यूँ तड़प के उसने मुझे याद न किया होता
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
सब की नफरतों को प्यार से जीतो
उनसे उनके की तरीके से पेश आएंगे
तो उन में आप मैं क्या फ़र्क रह जाएगा....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
अधूरे से ख़्वाब बुने , बिन मंज़िल के
सूनी रहो पे तन्हा जिये जा रही हूँ
न रास्ता पता न मंज़िल का ठिकाना
न जिंदगी में कोई उमंग-तरंग
न कोई मकसद रहा जीने का अब
ऐ , बेख़बर मैं खुद अंजान हूँ
तुम्हारी अनसुलझी, अनकही
"तस्कीन" सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
न जाने बीते दिनों की उनकी कौन सी बात याद आ गई
फिर वही पुरानी हँसी मेरे चेहरे पे आ गई.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम्हें पाने की जुस्तजू में इस क़दर खो चुकी हूँ की
पुराना कुछ याद नहीं रहा आगे का कुछ सोचा नहीं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
आज का दिन मैं कैसे भूल सकती हूँ आज के दिन ही
तो हमारी ज़िन्दगी के रास्ते अलग-अलग हुए थे....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
देखो,
सब कुछ बदला वक़्त , तक़दीर
पर जो न बदला न बदलेगा
वो,
मैं और मेरा प्यार.....
शीरीं मंसूरी तस्कीन"
इस झूठ की दुनियाँ में मैं किस पे यक़ीन करूँ
यहाँ तो सब सच का मुखौटा लगाये घूमते हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
उसके दिये लाखों ग़म छुपा के कुछ यूँ मुस्कुराई मैं कि
वो नादान बोला! आपकी मुस्कुराहट बहुत प्यारी है
नादान है वो बहुत सच में.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हाँ मैंने बहुत कुछ छुपाया है तुमसे और तुम्हारे सामने ऐसे मुस्कुराया जैसे कोई तकलीफ नहीं है उसके चले जाने से मेरी ज़िंदगी में क्योंकि बताने से वो मुझे और कमजोर न समझ बैठे हाँ मैंने बोला है तुमसे झूठ आज अपनी खुशी के लिए हाँ मैंने बोला है उससे झूठ.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ज़ख्म भी तुम्हारा मरहम भी तुम्हारा
वाह क्या अनोखा इश्क़ है तुम्हारा.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ये कैसा अजीब हाल है मेरे दिल का
क़लम मेरी होती है हाल तुम्हारा लिखती है....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
अजीब हाल है कुछ मेरी इस क़लम का जब भी कुछ लिखती है तुम्हारे किस्से बयाँ कर जाती अब तो ये भी न रही मेरी.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कुछ भी नहीं था मेरे पास तुमको देने के लिए तुम्हारे आँसू मोल लेके अपनी खुशियां दी हैं और वो कहता है मुझे क्या दिया तुमने.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम्हारे जाने के बाद कुछ नहीं बचा अब तो साँस भी तुम्हारे नाम से चलती है ....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
काश ! को काश ! ही रहने दो काश बड़ा खूबसूरत था हमारा ......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कुछ यूँ गले लगाया वो सारे दिए ग़म को पल में फिर मिटाया वो....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
सब तो ले जा चुका वो मेरी जिंदगी से फिर अपने नाम की कसक क्यों छोड़ गया उम्र भर लिए....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
मुझे बचपन से अपनी मातृभाषा से बहुत प्रेम रहा है
जब में एक स्कूल में पढ़ाती थी हिंदी तब लोग पूछते थे क्या पढ़ाती हो मैं कहती थी हिंदी तब लोग बड़े आश्चर्य से कहते थे मुँह बना के हिंदीदीदीदी......
तब मुझे उनका आश्चर्य वाला मुँह देख के बड़ा आश्चर्य होता था लोग अपने देश की हिंदी भाषा का नाम सुनते ही ऐसे मुँह क्यों बनाते हैं जबकि हमें हिंदी भाषा से बहुत प्रेम होना चाहिए पर मुझे अपने में गर्व होता था क्यों कि मुझे हिंदी से बहुत प्रेम है बचपन से ही हमेशा हिंदी में मेरे मार्क्स भी अच्छे आये हैं....
भाई हिंदी को इस नज़र से मत देखो आखिर हिंदी हमारी मातृभाषा है
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम्हारे इश्क़ का कारवाँ सारी उम्र चलेगा
मेरी धड़कन के साथ-साथ.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
✍✍✍✍
मैं आँखों में नींद लाने की कोशिश करुँगी
मग़र शर्त है ख्वाब में तुम आना
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जब साँझ ढ़ले गर तुम्हें मेरी याद आये तो
चले आना वहीं जहाँ हम पहली बार मिले थे
मैं तुम्हें वहीं खड़ी मिलूँगी "सिर्फ़ और सिर्फ़"
तुम्हारा इंतज़ार करते हुए उसी जगह दिलबर......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम सागर हो
तुमको बहने दूँ
मैं रेत हूँ
मुझको कुछ
देर तुम्हारे प्यार में
ठहरने दो...
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
"मैं", "तुम" और "तुम्हारी
तस्वीर"
आज भी वही पुरानी तुम्हारी तस्वीर रखी है किताबों के पन्नों के बीच में जो अब बहुत पीली पड़ चुकी है पता है न उसका पीलापन क्या निशानी है वो याद दिलाता है कि कई बरस हो गए हमारे पाक रिश्ते को अब भी उन पन्नों से खुश्बू आती है जब मैं उस किताब का बरक पलटती हूँ खुश्बू-ए-मअत्तर से ये जहाँ माअमूर हो जाता है उस तस्वीर की महक जो अब भी हमें पुरानी यादों के साये में कहीं खो जाने को बहुत दूर ले जाती है जहाँ मैं खुद को तुम्हारे साथ महसूस किया करती हूँ तुम्हारे प्यार भरे आलिंगन में फिर खो जाती हूँ ......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
देखा था इक ख्वाब इन बंद आँखों से
मगर वो ख्वाब , ख्वाब ही रहा
मैं उसे हकीकत में तब्दील न कर सकी
तुम्हारे साथ इक आशियाना सजाने की
बड़ी ख्वाहिश थी इस दिल में सनम
रोज़ फैलाये थे हर वक़्त नमाज़ में
ये हाथ खुदा-ए-पाक के सामने
मग़र लगता है दुआ फ़क़त आसमान से
टकरा के फिर जमीं पर आ गिरी
बंद आँखों के ख्वाब बन्द आँखों में रह गये
...
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो सफ़र कितना रंगीन था
जब मेरा सर तुम्हारे काँधे पे था
मेरी बाहें तुम्हारी बाहों में थीं
मानो उस पल ऐसा लग रहा था
जैसे सारी क़ायनात को मैंने
अपनी मुठ्ठी में समेट लिया हो
उस मंजर की बात न पूछो "तस्कीन"
उस पल हर लम्हा गुलाबी लग रहा था
तुम्हारे चेहरे पे मेरे प्यार की निशानियाँ थीं
मीलों दूर चले जा रहे थे "हम-तुम"
बस ऐसा लग रहा था उस पल को
यूँ हमेशा सबा की तरह बहने दो
सारी उम्र में तुम्हारी आँखों में खो जाऊँ
तुम मेरे हो जाओ मैं तुम्हारी हो जाऊँ
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हर बार किया हुआ तेरा झूठा वादा मिटाया
हर जगह से लिखा तेरा नाम मिटाया
हर तरफ से तेरी झूठी उम्मीद को मिटाया
हर पल दिए हुए तेरे ज़ख्म को मिटाया
हर तरफ से आई तेरी याद को मिटाया
तेरे साथ चले हुए पैरों के निशाँ को मिटाया
अफ़सोस!! इस दिल से तेरा नाम मिटाने में
हमेशा नाकामयाब ही रही ......😊😊😊😊😊
मेरे अनसुलझे हमसफ़र....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जिस रात ये दिल बार-बार करवटें गिन ने लगे
उस रात समझ लेना इस दिल को तुम्हारी बहुत याद आयी होगी .......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
करीब एक साल पहले की बात है मेरा मन था मुझे और पढ़ना है जीवन में कुछ करना है आगे बढ़ना है
तब मैं पापा से जिद कर बैठी इसी बात की मुझे आगे पढ़ना है पर उस समय पाप के दिल की बात नहीं जानती थी कि जितना मेरा मन है पढ़ने का उस से कहीं ज्यादा पापा का मन है मेरी बिटिया आगे बढ़े पर उनकी कुछ मजबूरियाँ थी कुछ जिम्मेदारियां थी उस समय मैं पापा को समझ नहीं पा रही थी जब मैं थक गई मेरी इच्छानुसार मुझे न मिला तब मेरे मन मैं ख़्याल आया कि शायद मेरे घर में भी लड़का लड़की में भेदभाव होता है उस वक़्त मैंने अपनी ख्वाहिशों को मार मन में की जो समाज में होता आया है कि लड़के को पढ़ाओ क्यों कि उन से आने वाली पीढ़ी चलेगी और घर में कमा के लेके आएगा लड़कियाँ आखिर पराया धन हैं एक दिन उनको ससुराल जाना है जितना पैसा पढ़ाई में लगाओ उतने में शादी हो जाये कुछ नहीं वक़्त बीता कुछ दिन बाद मुझसे पापा ने कहा कल जाके कानपुर भैया के साथ ऑप्टोमेट्री में अपना एडमिशन करा लेना बाहर पढ़ने की जाने की हुड़क तो थी ही मन खुशी से गदगद हो गया पर एक सवाल मेरे मन में चल रहा था पापा ने इतना सब अरेंजमेंट कैसे किया फिर मैंने पापा से हिम्मत जुटा के पूछा आप कहाँ से लाएंगे इतना पैसा ????? पापा ने कहा तुम्हें इससे क्या मतलब मेरा काम है पढ़ाना तुमको तुम्हारा काम है पढ़ना बस "बेटा" मेहनत से पढ़ना । पापा के ये कहते ही मेरे आँख में आँसू थे क्यों कि मैं कितनी गलत थी कि पापा लड़का-लड़की में भेद करते हैं उस समय मैं खुद से नज़रें नहीं मिला पा रही थी पापा ने कहा, "मैं चाहता हूँ कि मेरी बिटिया आत्मनिर्भर बने मुझे दहेज देके दहेजखोरों को बेचना नहीं है" तब घर के लोग सारे रिश्तेदार सब पापा के खिलाफ थे शादी कर दो पढ़ाओ मत तब उस वक़्त पापा सारी दुनियाँ से लड़ गये मेरे लिए तब अकेले सिर्फ मेरे पापा मेरे साथ थे उस समय मैंने बहुत गर्व महसूस किया कि मैं आप जैसे महान पिता की बेटी हूँ और बचपन से अब किसी ने मुझे साहस, प्रेणना नहीं दी जहाँ भी मैं कमजोर पड़ी पापा मेरे जीवन में एक ढाल बन के सहारा दिया
Dear, papa
Lovvvveeee uuuuu alootttt
आपकी बहादुर बेटी,
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
😍😍😘😘😘💕💕💕🌹🌹🌹🌙🌙🌙🌙🌙
तुम्हीं तो मेरा चाँद हो
हर साल की तरह सबसे
पहले बस मुझे
दिख जाया करो
तुम्हारे दीदार से ही तो मेरी
ईद होती है ऐ-जाने-जाना
सब की नज़रों से छुप के
मेरे दिल में उतर जाया करो
आख़िर तुम्हीं मेरा प्यार हो
तुम्हीं मेरी ज़िन्दगी हो
तुम्हीं मेरा चाँद हो
तुम्हीं मेरी ईद हो
ऐ आशिक-ए बहारा.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
तुम मेरी आँख से ओझल हो तब मैं नींद को इजाज़त दूँ आने की....
शीरीं मंसूरी"तस्कीन"
वो रात बहुत लंबी लगी
जिस सुबह तेरा दीदार होना था
साँसों में तेरे प्यार की खुशबू थी
दिल में अजीब सी बेचैनी थी......
शीरीं मंसूरी"तस्कीन"
आज तुमसे मिलकर मैंने सारे जहाँ की खुशियों को अपने दामन में समेट लिया......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हम न मिल सके तो क्या ग़म
हम-तुम मिलकर एक नया
कारवाँ बनायेंगे जिसे लोग
अपने प्यार के फसाने पढ़ के
हमें-तुम्हें याद करेंगे ....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
याद है न तुमको.....
तुम्हारे आने की आहट सुनकर
नँगे पैर दौड़ी चली आती थी
दरवाजे की चौखट पे खड़ी होके
तुम्हारे दीदार का इंतजार
किया करती थी तुम्हारा दीदार
कर के दुनियाँ की सारी
खुशियाँ पा लेती थी
उस पल में मैं न जाने
कितने पल जिये हैं मैंने
याद तो होगा न तुमको
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
हाथ में मैं वो लकीर आज भी ढूंढती हूँ
जहाँ "तुम्हारा मेरा" नाम लिखा हो
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो ख्वाब तो याद होगा न तुमको
जो मैंने तुम्हारी आँखों से देखा था
मैं तो न भूली आजतक क्या तुमको याद है
"बेबफा सनम"
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
न मेरी गलती न तुम्हारी गलती
जो वक़्त करता गया हम सनम
उसी के बताए रास्ते पे चले
दोषी कोई नहीं न मैं, न तुम सनम
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जरूरी नहीं हर पल मैं तुम्हारे साथ रहूँ
बस प्यार से एक बार मेरा नाम लेना
और हौले से अपनी आँखें बंद कर लेना
मुझे हमेशा अपने पास ही पाओगे .....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
बहुत दिनों के मिलने के बाद भी
हम लोग कितने बदले थे न
क्या करें हमारे बस में कुछ भी नहीं
क्या करें वक़्त ने किसी को नहीं छोड़ा
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
बेहतर यही होगा कि हम
बीते हुए लम्हों को भूल जाये
चाहे तुम हो या मैं
उनको भूल जाना ही
दोनों के लिए बेहतर होगा
यूँ बार-बार प्यार दिखा के
हम वक़्त ही जाया करते हैं
जो मुमकिन न हो सका
उसका क्या गम करें
तुम एक सपना थे
ये सोचकर ही तुमको
भूल जाना ही बेहतर है
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जिस दिन तुम्हारा दिल
तुमको मजबूर कर दे
मेरी यादों के साये में जाने को
उस दिन समझ लेना
प्यार तो तुमको भी हुआ था
कभी सनम मुझसे......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
कभी न कभी कहीं न कहीं
तुम्हारा मुझसे कोई वास्ता तो रहा होगा
वरना यूँ तड़प के आज
तुमको मेरी याद न आई होती
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जहाँ-जहाँ जिस-जिस जगह
तुमने मुझे भुलाने की कोशिश की
मैं वहाँ-वहाँ उस-उस जगह
अपने प्यार के निशाँ हमेशा के लिए
तुम्हारे लिए छोड़ गई
पूछो भला ! अब तुम
कहाँ-कहाँ किस-किस जगह से
मेरी यादों को भुलाओगे भला !
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
मेरे लिए यही काफ़ी है तुम मेरे शहर आये
और तुमको मेरी याद आई......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जहाँ रिश्ते और इंसान की क़दर नहीं
हमें उस रास्ते जाना नहीं .....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
जिन्दगी में हर रिश्ते की कीमती होती है
प्यार से भी प्यारा रिश्ता है हमारा दोस्ती का
जितनी शिद्दत से मैंने निभाया है रिश्ता
काश! इतनी ईमानदारी तुमने भी निभाई होती तो
आज इतना फासला न होता हम-दोनों के दरमियाँ
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो हमेशा हमसे कहता रहा
.
.
.
.
.
.
मैं दुनियाँ में मशगूल हूँ....
.
.
.
.
मैं हमेशा के लिए उसे छोड़ दी
जाओ मैं तुम्हारी खुशी में खुश हूँ
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
किसी रिश्ते में इतनी गुंजाइश रखो की आप दोबारा उससे नज़रें मिला सकें न कि उसके सामने शर्मिंदा हों.....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
मेरी दिल की धड़कनें मेरी साँसें
तुम्हारी रूह से होकर जाती हैं
जो तुम नहीं तो ये जग सूना सूना
मैं कैसे करूँ बयाँ तुम्हारे इश्क़ को
ये मैं खुद जानू न ऐ बेख़बर सनम....
शीरीं मंसूरी तस्कीन"
मैं तो तुम्हें कब का भूल चुकी होती पर तुम्हें
न भूलने वाले दिये हुये वादे पर कायम हूँ अब तक
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
फ़लसफ़ा अपने प्यार का
इस जमीं पे क्या
फ़लक पे भी लिखेंगे
गर दे दो साथ तुम मेरा तो
इस सारे जहाँ पे लिख दूँ....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"