तब उस वक़्त मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ़ हुयी थी
मगर अब सोचती हूँ कि न तुम ऐसा करते
तो शायद मैं अब तक उजाले से अंजान ही रहती...
नफरतों की दुनियाँ से निकल के देखो
सच!दुनियाँ बड़ी खुशनुमा लगेगी......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
ज़श्न-ए-बहारा हो तुम्हारे बाहों की गिरफ में
ये लम्हात को याद कर के तुम अक्सर मुझे
याद आ जाया करते हो......
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
वो मेरी आशिक़ी था
मैं उनकी ग़लती
ऐसे -ऐसे मैं उनकी
मुहब्बत बन गई
वो नादाँ समझ न पाया
कब मैं उसके दिल की
चाहत बन बैठी
अब ये गुनाह वो कर बैठा
ना जाने कब वो प्यार के
सफ़र में सवार हो गया
इस बात से वो अभी अंजान है
यारो वो रास्ता भटक गया है
कोई जाके उनको
मुहब्बत की दुनियाँ से दूर
नफ़रतों की दुनियाँ में
भेजने में मदद करो
जीत हमेशा मुहब्बत की
हुई है....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
सुनो,
ये जो तुम्हारी यादों का सफ़र है न
ये तुमको भूलने में मुझे बहुत तकलीफ़ देता है
हो सके तो इसे वापस ले जाओ
बड़ा एहसान होगा तुम्हारा.....
तुम्हारी नापसन्द
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
आज भी कुछ लफ्ज़ उनके मेरे दिल में
धड़कन बन के धड़का करते हैं....
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"