मैं तुम्हें
जितना भूलने की कोशिश करती हूँ
तुम मुझे उतना
ही याद आते हो
मुझे पता नहीं
ये मेरी कमी है
या ये तुम्हारी
कमी है
शायद ये
तुम्हारी ही कमी है
कि तुम इतने
अच्छे न होते
तो शायद मैं
तुम्हें कभी याद न करती
तुम्हारे जैसा
ढूढा भी बहुत मैंने
पर तुम तो सबसे
अलग हो इस दुनियाँ में
तुम्हें ऊपर
वाले ने अकेला बनाया है
तुम्हारे जैसा
कोई हो भी नहीं सकता
क्योंकि तुम
सबसे अच्छे हो
पता है तुहारी
पहचान क्या है
अच्छाई ही
तुम्हारी पहचान है
शीरीं मंसूरी
“तस्कीन”
नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
ReplyDeleteचर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।
सूचना (संशोधन) -
Deleteनमस्ते, आपकी रचना के "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) में प्रकाशन की सूचना
9 -11 -2017 ( अंक 846 ) दी गयी थी।
खेद है कि रचना अब रविवार 12-11 -2017 को 849 वें अंक में प्रातः 4 बजे प्रकाशित होगी। चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ आपकी आपके स्नेह की ....☺
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकि तुम इतने अच्छे न होते
ReplyDeleteतो शायद मैं तुम्हें कभी याद न करती।
बहुत शानदार। वाह
सुन्दर
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteNice poetry....Congrats!!
ReplyDeleteये देखने वाले की नज़रों का कसूर भी हो सकता है की उन्हें कोई वैसा दिखाई ही न देता हो ... और ये भी की उनसा अच्छा कोई है भी नहीं ... मन की भावनाओं को लिखा है ..
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