Wednesday 28 June 2017

मैं तुम्हें जितना भूलने की कोशिश करती हूँ

मैं तुम्हें जितना भूलने की कोशिश करती हूँ
तुम मुझे उतना ही याद आते हो
मुझे पता नहीं ये मेरी कमी है
या ये तुम्हारी कमी है
शायद ये तुम्हारी ही कमी है
कि तुम इतने अच्छे न होते
तो शायद मैं तुम्हें कभी याद न करती
तुम्हारे जैसा ढूढा भी बहुत मैंने
पर तुम तो सबसे अलग हो इस दुनियाँ में
तुम्हें ऊपर वाले ने अकेला बनाया है
तुम्हारे जैसा कोई हो भी नहीं सकता
क्योंकि तुम सबसे अच्छे हो
पता है तुहारी पहचान क्या है
अच्छाई ही तुम्हारी पहचान है

शीरीं मंसूरी “तस्कीन”

12 comments:

  1. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

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    1. सूचना (संशोधन) -

      नमस्ते, आपकी रचना के "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) में प्रकाशन की सूचना
      9 -11 -2017 ( अंक 846 ) दी गयी थी।
      खेद है कि रचना अब रविवार 12-11 -2017 को 849 वें अंक में प्रातः 4 बजे प्रकाशित होगी। चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।




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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूँ आपकी आपके स्नेह की ....☺

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  3. कि तुम इतने अच्छे न होते
    तो शायद मैं तुम्हें कभी याद न करती।

    बहुत शानदार। वाह

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  4. वाह! बहुत सुन्दर

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  5. सुन्दर रचना...

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  6. सुन्दर रचना.

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  7. ये देखने वाले की नज़रों का कसूर भी हो सकता है की उन्हें कोई वैसा दिखाई ही न देता हो ... और ये भी की उनसा अच्छा कोई है भी नहीं ... मन की भावनाओं को लिखा है ..

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