वक़्त भी कितना
अजीब है न
इन्सान को क्या
कुछ नहीं सिखा देता
जब मुझे
तुम्हारी ख्वाहिश थी
तब तुम्हें
मेरी ख्वाहिश नहीं थी
जब मैं तुमसे
बेपनाह प्यार करती थी
तब तुम्हें
मुझसे प्यार नहीं था
उस वक़्त जब तुम
मुझे छोड़कर जा रहे थे
अपनी खुशियों
की दुनियाँ में
तब तुम्हें
मेरे खोने का कोई गम नहीं था
मैंने तुम्हें
लाख मनाया समझाया
पर तुमने मेरी
एक न मानी
उस आखिरी वक़्त
मैंने
तुमसे कहा था “
तुम पछताओगे “
वक्त वो दिन
जल्द ही लाया
जब तुमने मुझसे
कहा कि
आज तुम्हारी
दुनिया में सब कुछ है
पर तुम खुश
नहीं हो
शायद तुम्हें
मेरे खोने का गम है
आज मेरी
दुनियाँ में कुछ भी नहीं है
पर मैं तुम्हें
खोने के बाद बहुत खुश हूँ
कल के दिन
तुम्हें मेरा एहसास नहीं था
आज मुझे तेरा
एहसास नहीं है
वक्त भी कितना
अजीब है न
शीरीं मंसूरी
“तस्कीन”