तस्कीन
Friday, 5 January 2018
इस नादान से दिल के आगे
इस नादान से दिल के आगे
मैं इससे लड़ते-लड़ते हार चुकी हूँ अब
दिन-व-दिन तुम्हें पाने की चाहत
इसकी बढ़ती ही चली जा रही है
मेरे हमनवां
शीरीं मंसूरी "तस्कीन"
2 comments:
Lokesh Nashine
5 January 2018 at 22:38
बहुत खूब
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Ravindra Singh Yadav
6 January 2018 at 09:16
सुंदर अभिव्यक्ति।
पीले रंग के कारण अक्षर ठीक से पढ़ने में मुश्किल हो रही है।
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बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteपीले रंग के कारण अक्षर ठीक से पढ़ने में मुश्किल हो रही है।