Friday, 5 January 2018

इस नादान से दिल के आगे

इस नादान से दिल के आगे
मैं इससे लड़ते-लड़ते हार चुकी हूँ अब
दिन-व-दिन तुम्हें पाने की चाहत
इसकी बढ़ती ही चली जा रही है
                      मेरे हमनवां

शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

2 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति।
    पीले रंग के कारण अक्षर ठीक से पढ़ने में मुश्किल हो रही है।

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