Wednesday, 3 January 2018

एक बात पूंछू तुमसे रूठोगे यो नहीं

एक बात पूंछू तुमसे रूठोगे यो नहीं
जैसे आकाश कभी अपनी धरती का
चन्दा कभी अपनी चाँदनी का
रात कभी अपनी जुगनू का
सागर कभी अपनी लहरों का
फूल कभी अपनी महक का
भँवरा कभी अपनी गुनगुनाहट का
दिल कभी अपनी धड़कन का
सूरज कभी अपनी लालिमा का
नींद कभी अपने सपनों का
साथ नहीं छोड़ती है
फिर तुमने मुझे क्यों छोड़ दिया तन्हा
इस दुनियां में अकेला


शीरीं मंसूरी "तस्कीन"

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