Thursday, 4 January 2018

दिन के बाद रात आती है

दिन के बाद रात आती है
ख़ुशी के बाद गम आता है
विरह के बाद मिलन आता है
अँधेरे के बाद उजाला आता है
पतझड़ के बाद हरयाली आती है 
सूखे के बाद वारिश आती है
हर किसी न किसी जाने के,
बाद वापस आता है
पर तुम तो ऐसे गये,
कि फिर वापस न आये
अब बस बहुत हुआ लौट आओ न


शीरीं "तस्कीन"

2 comments:

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    1. विरोधाभासों के ज़िक्र में ख़ूबसूरती से रख दी गई अपनी बात।
      सुंदर रचना।

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