दिन के बाद रात आती है ख़ुशी के बाद गम आता है विरह के बाद मिलन आता है अँधेरे के बाद उजाला आता है पतझड़ के बाद हरयाली आती है सूखे के बाद वारिश आती है हर किसी न किसी जाने के, बाद वापस आता है पर तुम तो ऐसे गये, कि फिर वापस न आये अब बस बहुत हुआ लौट आओ न
मेरा तुम्हारा साथ एक पतंग और हवा
के जैसा है जब एक पतंग और हवा एक-दूसरे का
साथ पाकर नीले आकाश में जब दूर तलक निकल
जाते हैं जहाँ उन्हें दूर तलक कोई छू नहीं
सकता उसी तरह मेरा-तुम्हारा साथ पतंग और
हवा जैसा है जब तुम मेरे साथ-साथ चलते हो तो मैं हर मुश्किल को पार कर लेती हूँ और ज्यों हवा पतंग का साथ छोड़ देती
है तो पतंग अकेली लड़ते-लड़ते कट जाती है उसी तरह जब तुम मेरा हाथ छोड़ते हो तो मैं अपनी मंजिल से बहुत दूर चली
जाती हूँ