Sunday, 21 May 2017

मिटा देना है दुनियां के हर रिवाज

मिटा देना है दुनियां के हर रिवाज को 
बढ़ाना है नारियों के सम्मान को विश्वास को
तोड़ना है इस दुनियां की जंजीरों को
कर दिखाना है कुछ इस दुनियां के लोगों को

ख़त्म करना है दुनियां से स्त्री पुरुष के भेदभाव को
आज खुद से संकल्प लेती हूँ ये अभी इसी समय
रही यूँ जिंदा तो ख़त्म करूँगी इस भेदभाव को
मिटा दूँगी दुनिया की बड़ी से बड़ी दीवार को

क़सम उस हर औरत की चीख को
जहाँ कई स्त्रियों ने खुद को जलाया है
इस लोक लाज के भय से
मिटा दूँगी इन सारी बंदिशों को

ख़त्म कर दूँगी दुनियां की हर ताक़त को
जिस तरह मैं तिल तिल हर रोज मरी हूँ
स्त्री पुरुष के भेदभाव को देखकर
आज इस भेदभाव को ख़त्म करने को जी चाहता है

उस दिन खुद को उन्नति के पथ पर पाऊँगी
जिस दिन इस बोझ को अपने सर से उतारूँगी
वह पल मेरी ज़िन्दगी का अनमोल पल होगा

जब नारियों के हक़ के लिए मैं लडूँगी न्याय दिलाऊंगी 

शीरीं मंसूरी 'तस्कीन'

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