मिटा देना है
दुनियां के हर रिवाज को
बढ़ाना है नारियों के
सम्मान को विश्वास को
तोड़ना है इस दुनियां
की जंजीरों को
कर दिखाना है कुछ इस
दुनियां के लोगों को
ख़त्म करना है
दुनियां से स्त्री पुरुष के भेदभाव को
आज खुद से संकल्प
लेती हूँ ये अभी इसी समय
रही यूँ जिंदा तो
ख़त्म करूँगी इस भेदभाव को
मिटा दूँगी दुनिया
की बड़ी से बड़ी दीवार को
क़सम उस हर औरत की
चीख को
जहाँ कई स्त्रियों
ने खुद को जलाया है
इस लोक लाज के भय से
मिटा दूँगी इन सारी
बंदिशों को
ख़त्म कर दूँगी
दुनियां की हर ताक़त को
जिस तरह मैं तिल तिल
हर रोज मरी हूँ
स्त्री पुरुष के
भेदभाव को देखकर
आज इस भेदभाव को
ख़त्म करने को जी चाहता है
उस दिन खुद को
उन्नति के पथ पर पाऊँगी
जिस दिन इस बोझ को
अपने सर से उतारूँगी
वह पल मेरी ज़िन्दगी
का अनमोल पल होगा
जब नारियों के हक़ के
लिए मैं लडूँगी न्याय दिलाऊंगी
शीरीं मंसूरी 'तस्कीन'
शीरीं मंसूरी 'तस्कीन'
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