कुछ ज़िन्दगी की
हकीक़त थी
पर मैंने उसे
स्वीकार नहीं किया
बचपन में मैं सोचती
थी कि
ये भेद भाव के रस्मो रिवाज कुछ नहीं होते
दिन बीतते गए सच
सामने आता गया
फिर भी मैं जानकर
अंजान रही
सच सामने था पर
हमेशा की तरह उसे नकारती रही
पर सच से मैं कब तक
पीछे भागती
उसे तो एक न एक दिन
सामने आना था
फिर एक दिन खुद अपनी
लड़की होने की इस कमी को स्वीकारा
जब सब मेरे साथ मेरी
आँखों के सामने हुआ
लोगों ने सच ही कहा
है कि लड़कियां पराया धन होती हैं
अपनी जान को निछावर
करने के बाद भी
उन्हें हमेशा यही
सुनने को मिलता है
कि लड़कियां पराया धन
हैं पराया धन
शीरीं मंसूरी 'तस्कीन'
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