चन्दा अपनी चाँदनी से कह दो चली
जाये यहाँ से
अब मुझे ये काली रातें ही अच्छी
लगतीं हैं
चाँदनी रात अब मुझे बैरी विरहन सी
लगती है
चाँदनी रात में मेरे दिल के ज़ख्म
भी दिखाई पड़ते हैं
काली रातों से मैंने दोस्ती जो कर
ली
अब वही मुझे शीतल और निर्मल लगती
है
चन्दा तुम्हारी ये चंदनियां बड़ा
सताती है
अपनी रौशनी से मेरे ह्रदय को बड़ा
जलती है
चन्दा अपनी चाँदनी से कह दो चली
जाये यहाँ से
शीरीं मंसूरी “तस्कीन”
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