Thursday 28 December 2017

आज हवाएं बहुत तेज हैं

आज हवाएं बहुत तेज हैं
मेरे कानों के पास से गुजर कर
ये मुझसे कुछ कह रही हैं
हमेशा तुम अकेली क्यों आती हो
अपने महबूब को क्यों नहीं लायी
कब तक इन हवाओं से
इन महके हुये फूलों से,
इन चाँदनी भरी रातों से
कब तक झूठ बोलूँ कि मेरा महबूब
अब तक मुझसे रूठा जो है
शायद इन हवाओं को, मैं तुम्हारे पास भेजूं
तो ये हवाएँ ही तुम्हें , मना के ले आएं
मेरी न सही ऐ मेरे महबूब
इन हवाओं की तो सुनोगे तुम
तब तो तुम्हें तरस आएगा न मेरे दिल पर
ये दिल तुम्हें कितना बार-बार कितना याद करता है

 मंसूरी "तस्कीन"

1 comment:

  1. हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति. बधाई शीरींजी. सरलता में लिपटी मर्मस्पर्शी रचना बहुत प्रभावशाली है. लिखते रहिये.
    अंतिम पंक्ति में मामूली सुधार की गुंज़ाइश है.

    ReplyDelete