यूँ तो कुछ देर ठहर जाती वो रात
तेरे मेरे मिलन की वो आखिरी रात
यूँ तो कुछ देर तुम्हें आये न हुआ
तुमने कह दी फिर वो जाने की बात
यूँ तो कुछ........
तेरे आगोश में मैं आने न पायी थी
अभी
तुमने कह दी फिर से जाने की वो
बात
यूँ तो कुछ........
यूँ तेरे दामन से लिपट के रो भी न
पायी थी अभी
तुम फिर से दे गये वो आँसू जार-जार
यूँ तो कुछ........
अपने खामोश लबों को हिला भी न
पायी थी अभी
अपने लबों से कर दी फिर से जाने
की वो बात
यूँ तो कुछ........
शीरीं मंसूरी “तस्कीन”
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