Monday 4 December 2017

यूँ तो कुछ देर ठहर जाती वो रात

यूँ तो कुछ देर ठहर जाती वो रात
तेरे मेरे मिलन की वो आखिरी रात

यूँ तो कुछ देर तुम्हें आये न हुआ
तुमने कह दी फिर वो जाने की बात
यूँ तो कुछ........

तेरे आगोश में मैं आने न पायी थी अभी
तुमने कह दी फिर से जाने की वो बात
यूँ तो कुछ........

यूँ तेरे दामन से लिपट के रो भी न पायी थी अभी
तुम फिर से दे गये वो आँसू जार-जार
यूँ तो कुछ........

अपने खामोश लबों को हिला भी न पायी थी अभी
अपने लबों से कर दी फिर से जाने की वो बात
यूँ तो कुछ........


शीरीं मंसूरी “तस्कीन”

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